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दोनों के मिलने से ब्रहमांड की उत्पत्ति होती है.....जड़ स्वमेव कोई स्रष्टि नहीं कर सकता.
इसका अर्थ है की जड़ भी चेतन से ही स्रष्ट होता है....यानि जो कुछ भी है वो चेतन ही है .
उसीको भगवती,,उसीको ब्रहम ..उसीको परमात्मा..उसीको भगवान् ,कुछ भी कह सकते हैं.
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यही है शिव और शक्ति का खेल....इसके अलावा जो भी है,
माया है
माया है
माया है
इस माया में जादू,,चमत्कार ..आदि-आदि जाने क्या-क्या देखने को मिलता है.,लोग इस सत्य को पाने के लिए भी "बिचोलियों "( मुल्ला,पंडत,पादरी,ओझा,तांत्रिक,मान्त्रिक )के पास जाते हैं......क्या ये बिचोलिये ब्रहम की क्रपा दिलवा सकते हैं ??????
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