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Wednesday, January 14, 2015

योगीराज के विवेक दर्पण


मेरे प्यारे भाईयो।
हमारा जीवन कॆसा चलता हॆ, हम मनपर लक्ष्य न रखते....
क्यू की हम मनके अधीन हो गये ऒर हम मनमानी चल रहे हॆ।
जब दीलपर दु:खकी चोट बठती हॆ तब हमको जागृत आती हॆ।
ये ऎसा क्यू हो गया मगर फीर हम मन के अधीन रहते हॆ।
हमारे मनपर नजर रख दी तो हमको दु:ख क्यू मीलता हॆ समजमें आता हॆ।
मनपर ध्यान रखना चाहीये फीर देखो आपका मन शुध्द हो रहा हॆ हमे तो पत्ता चलता हॆ।
मन का वीचार गहरा रहता हॆ जब मनमें कोई विचार आता हॆ भुत होई आता हॆ...... क्यू की हमारा मन कही दीन बाद उस संस्कारसे बीजसे प्रेरीत होता हॆ।
वही प्रेरीत होई बीज अंत:करणसे बाहर चीत्तपटलपर....... आता हॆ वो भुतके रूपमें......, ओ तो भुतकाल विचार्से हमारे मनमें आता हॆ ओर हमकॊ सताता हॆ।
वही भुत हम तो वर्तमानमें जीते हॆ मगर हमको जीना मुश्कील करता हॆ क्यू की ओ भुत दु:खके रूपमें रहता हॆ। हमको जीना हराम करता हॆ।
हम तो दु:खी होते ओ अंहकारके रूपमें जब हमारे मनमें अहंकार हॆ तब हम दु:ख तॊ भॊगना पडता हॆ यही काल वर्तमानसे भविष्यका चिंतन करता हॆ।
ऎसा नही होना चाही था ये काल अंहकारके रूपमें आता हॆ।
मगर हमारा लक्ष्य कभी नही मनपर जाता ऒर हम दु:खी हॆ हमको क्यू दु:ख आता हॆ दु:ख कबी आता नही हमतो मनमे दु:ख का संस्कार बनाते हॆ।
हमारा मन संकल्पसे जोड गये वही संस्कार वर्तमानकालसे....... सुखदु:खके भोगसे होता हॆ ऒर हमारा मन संकल्पका नाता जोड जाता हॆ......।
कही दीन बित गये हमारा मन विकल्प होये गये विचारसे तादत्म्य होकर हम भुतकालसे विचारसे कल्पना जॆसी विचार मनमें आ जाता हॆ
ऎसा नही होना नही चाहीये था। मगर हम तो मनके अधीन हो चुके हॆ। हमारे मनपर लक्ष्य दिया तो सबकुछ समज जायेगा.......।

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