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Saturday, January 17, 2015

अलॊकीक योग दर्शन लेख। (64)


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शिशु की जिह्वा उल्टी क्यों रहती है ?
‘कान’ बन्द क्यों रहता है ?
गर्भस्थ शिशु जब गर्भ से बाहर आता है तो देखा जाता है कि उसका कान ‘एक विचित्र किस्म के ध्वनि अवरोधक पदार्थ’ रूप ‘जावक’ से बन्द रहता है, जिसके कारण बाहरी कोई ध्वनि या शब्द अन्दर नहीं पहुँच पाती है। गर्भ में नार-पुरइन के माध्यम से शिशु ब्रह्म-ज्योति से सम्बंधित रहता है जिसके कारण अन्नाहार और जल के स्थान पर अमृत-पान करता रहता है। ब्रह्म के पास निरन्तर दिव्य-ध्वनियाँ होती रहती हैं, जिसको सुनते हुये शिशु मस्त पड़ा रहता है जो ‘अनहद्-नाद’ कहलाता है।
शिशु की नार-पुरइन जब काट दी जाती है तो ब्रह्म से सम्बन्ध भी कट जाता है और तब दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देनी बन्द हो जाती हैं, जिसके स्थान पर माता-पिता या पारिवारिक सदस्य लोग शिशु को उन दिव्य ध्वनियों के स्थान पर धोखा, छल एवं कपट पूर्वक जो नकली ध्वनियाँ फूल की थाली बजाकर कि ये वही दिव्य ध्वनियाँ हैं, सुनाते हैं। शिशु बेचारे को क्या मालूम कि उसके माता-पिता एवं पारिवारिक सदस्यों द्वारा ही उसको प्रसूति-गृह में ही धोखा, छल, पाखण्ड, नकल एवं भ्रामक व्यवहार में फँसा दिया जाएगा।

                      

‘सोsहं’ का नकल एवं फँसाहट रूप सोहर –
गर्भ स्थित शिशु शरीर में जैसे ही जीव का प्रवेश होता है जो ‘प्राण-प्रतिष्ठापन’ भी है, वैसे ही शरीर के अन्दर से यह आवाज निकलती है ---‘कोsहं’ जिसका अर्थ हुआ ‘मैं कौन ?’ कहीं से जबाब नहीं मिला, तब बार-बार यह आवाज होने लगी। तब कहीं एक विचित्र दिव्य-ज्योति दिखलाई दी, जो ‘सः’ शब्द रूप आवाज शरीर के अन्दर स्वांस-प्रस्वांस के साथ प्रवेश कर ‘कः’ के स्थान को ‘सः’ ले लेता है, जिससे कोsहं के स्थान पर सोsहं आवाज होने लगी, जो आज तक कायम है और आगे भी रहेगी।
जब सोsहं का सम्बन्ध कट जाता है, तब शिशु परेशान न हो अथवा परेशान होकर जीव शरीर ही न छोड़ दे, इसलिए सोsहं के स्थान पर ‘सोहर’ गा-गाकर शिशु को सुनाती हैं, जिसमें शिशु भटक जाता है कि हम उसी जाप को सुन रहे हैं।

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