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Saturday, January 17, 2015

वेद ही है परमात्मा :-


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वेद ही परमात्मा की पवित्र वाणी है जिसमें परमात्मा ने मनुष्य को सृष्टि में रहकर उत्तम तरीके से जीवन जीने के तरीका बताया है। आज मनुष्य वेद की शिक्षाओं को भुलाकर पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण कर रहा है जिसके कारण अधिकतर मनुष्य दुखी हैं।
वेद में मनुष्य को जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति के शिखर पर पहुंचने का मार्ग बताया गया है। वेद में वैज्ञानिक आधार पर जीवन जीने का आध्यात्मिक विकास का मार्ग बताया गया है। इस मार्ग पर चलकर मनुष्य अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है। वेद में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रास्तों को मिलाकर अपनाने की शिक्षा दी गई है।
केवल एक मार्ग पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को उन्नति के शिखर पर नहीं पहुंचा सकता है। केवल एक मार्ग पर चलने वाले लोग गहरे अंधकार में डूब जाते हैं जिसके कारण अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने के बजाय अंधेरे रास्तों में भटक कर जीवन को बर्बाद करते रहते हैं। केवल भौतिक मार्ग को अपनाने वाले लोग भौतिक सुख सुविधाओं को एकत्र करने में लगे रहते हैं। वे इन सुख सुविधाओं के माध्यम से शरीर को सुसज्जित करने में तो लगे रहते हैं किन्तु आत्मा के विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दे पाते हैं। जिसके कारण वे अपने चरम लक्ष्य की प्राप्ति की ओर एक कदम भी नहीं चल पाते हैं और परमात्मा द्वारा दिए गए इस अनुपम मानव जीवन को बर्बाद कर देते हैं।
दूसरी ओर केवल आध्यात्मिक मार्ग को अपनाने वाले लोग भी भौतिक साधनों का सहारा लिए बिना अपनी जीवन नौका को पार नहीं लगा सकते हैं। शरीर की रक्षा के लिए भौतिक साधनों का सहारा लेना आवश्यक हे। मनुष्य जीवन सुरक्षित रहने पर ही वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ सकता है। आज हम वेद की शिक्षाओं को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने में लगे हैं। यह संस्कृति मनुष्य को केवल भौतिक मार्ग चलने के लिए प्रेरित करती हैं। यह मार्ग देखने में तो बहुत आकर्षक लगता है किन्तु अंत में यह दुख में गहरे सागर में ले जाकर जीवन को कष्ट भोगने के लिए मजबूर करता है। हमें वेद की शिक्षाओं का पालन करते हुए भौतिक और आध्यात्मिक मार्ग दोनों का समन्वय करके चलना चाहिए। दोनों मार्गो के समन्वय से ही मानव उन्नति के शिखर पर पहुंच सकता है।

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