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मन को एकाग्र करने के लिए विभिन्न संस्कृतियों के लोग अलग अलग
तरीके अपनाते हैं। कुछ लोग
सांस की आवाजाही पर ध्यान टिकाते हैं तो कुछ और भ्रू मध्य पर (भवों
के बीच ),
कुछ मेरुदंडीय स्तम्भ के मनस्तत्व केन्द्रों (Psychic Centres in the
spinal column )में।
कुछ किसी झील के किनारे मन को ले जाते है आँखें बंद करके बुद्धि से
यात्रा करते हैं।
कुछ किसी ख़ास रंग के प्रकाशप्रतीक पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। आरोपित करते हैं उसमें सुप्रीमसोल को। बेशक इन सब विधियों के लाभ हैं लेकिन मन को एकाग्र चित्त करने में इन विधियों की अपनी सीमाएं हैं। अस्थाई हैं इनसे मिलने वाले लाभ भी टिकाऊ नहीं हैं। कारण यहाँ आग्रह मन की शुद्धि पर नहीं है।
जब तक मन में ईर्ष्या ,वासना ,लोभ -लालच ,क्रोध ,होड़ ,किसी और की वस्तु की चाहना है ये बाहरी बल उस बढ़ी हुई लेकिन सीमित एकाग्रता को नष्ट कर देते हैं।इसलिए पहले यह जानलेना महत्वपूर्ण है मन को पावन कैसे बनाया जाए। कैसे शुद्धिकरण किया जाए इस इन्द्रियों के विषयों में आसक्त मन का।
इसके लिए सहारा एक ऐसे आलंबन का ध्यान केन्द्रित करने के लिए लिया जाए जो स्वयं पवित्र हो। भौतिक संसार की परिधि के आलंबनों में तो प्रकृति (मैटीरियल एनर्जी )के तीन गुणों का ही प्रभुत्व मिलेगा। सतो (सत ),रजस और तमो (तम )यानी goodness ,passion and ignorance का। यदि ध्यान (मेडीटेशन )का आलंबन पदार्थ (मैटीरियल )है तो फिर यह मन को शुद्ध नहीं कर सकता।
इस भौतिक पदार्थीय आलम्बन से परे साधना के दिव्य आधार मौजूद हैं।
ये हैं :
(१)प्रभु का नाम
(२) रूप (रूप ध्यान ),Meditation on the Form of God .
(३)गुणों का ध्यान और मनन (Meditation on His virtues)
(४ )परमात्मा का धाम (गोलोक ,कैलाश ,क्षीरसागर में शेष शैया )
(५)परमात्मा की लीलाएं
(६) संतों का स्मरण ,ध्यान
मां च योअव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते
स गुराणंसमतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते (श्रीमदभगवद गीता ,१४.२६ )
I am Divine .If you fix your mind on Me ,it will rise above the
three modes of Maya (Material Energy ).
जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा था -
शुद्धयति हि नान्तरात्मा कृष्णपदाम्भोज भक्तिमृते।
"The inner self ,the mind ,cannot be cleansed without fixing
it in devotion of God ."
भगवान् की भक्ति के बिना चित्त की शुद्धि नहीं हो सकती।
(सारी ज़िन्दगी अहमब्रह्मास्मि कहा ,निराकार ब्रह्म में मन लगाया ,काशी विश्वनाथ के मंदिर में आये तो रो पड़े अपनी गलती मानी
भक्ति की और लौटे ,भगवान् की पर्सनल फॉर्म ,रूप ध्यान का सुख पता चला )
हमारे चारों तरफ का परिदृश्य यही है :कोई चक्रों पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है ,कोई सांस पर और कोई नासिकाग्र पर। कोई भ्रू -मध्य
पर (the centre of the eyebrows).कोटों में भी कोई ही जानता है रूप ध्यान को। "ईशवर में मन लगाना आसान है उसे नहीं मालूम ".
One technique has been given the name "Transcendental Meditation ",but the object of meditation is not
One technique has been given the name "Transcendental Meditation ",but the object of meditation is not
transcendental .
ध्यानातीत योग वह है जहां हम मन को भगवान् में (रूप ध्यान )में लगाते हैं जो गुणातीत है,भौतिक ऊर्जा के प्रकृति के तीनों गुणों
से परे है।
जगद्गुरु श्रीकृपालुजी महाराज कहते हैं :
सर्व शास्त्र सार यह गोविन्द राधे।
आठों याम मन हरि गुरु में लगा दे। (राधा गोविन्द गीत )
सभी उपनिषदों का सार है मन -को भगवान् और गुरु में लगा दो। इन्हीं का ध्यान करो।
यहाँ बल नाम ,रूप ,गुण और लीलाओं और प्रभु के धाम पर ही है। वही आलंबन बने ध्यान के।मनन के सिमरन के।
इसलिए गीता में बारहा भगवान् अर्जुन को कहते हैं हे अर्जुन मन को सिर्फ मुझमे ही लगाओ।
मूरख हृदय न चेत ,यदयपि गुरु विरंची सम (यदि गुरु मिलै विरंची सम )
फूलैं फलें न बैंत ,यद्यपि सुधा बरसहिं जलधि। (जलद )
तुलसीदास ज़ोरदार शब्दों में कहतें हैं :
चाहे अमृत की वर्षा हो लेकिन बैंत के वृक्ष में फल और फूल नहीं लगते। ऐसे ही जो (प्रवचन ,संत वाणी ,भगवान् की ओर ले जाने वाले रास्ते की बातें )सुनना ही नहीं चाहते उन पर संत या कोई और भी फिर क्या कृपा करेगा। भगवान् के बहके हुए पुत्रों को कपूतों को कोई भगवान् की बातें क्या बतलायेगा। और यदि वह सुन भी लेगा तो हंस देगा। कहेगा ये इंसान के दिमाग की उपज है जिनकी खोपड़ी खराब हो चुकी है जो जंगल में आधे बावले बने घूम रहे हैं उन्होंने भगवान् का हौव्वा खडा किया है ताकि इनके खाने पीने का बिना हाथ पैर चलाये इंतजाम हो जाए।
An adamant man's heart will not change even if he gets Bahma as Guru .Even if heavenly nectar rains a bamboo will not produce flower or fruits .What grace any saint can bestow on any person who does not want to listen ,and even if he does listen he would just laugh at it .
(KABIR )
सुख के माथे सिल परो ,नाम हृदय से जाये ,
बलिहारी उस दुःख की ,कि पल पल नाम रटाये।
EVEN A DONKEY KNOWS THIS GENERAL RULE -
"CAST STONES AT THAT HAPPINESS THAT MAKES ONE FORGET GOD AND ALL GLORIES TO THAT
SORROW THAT MAKES REMEMBER GOD EVERY MOMENT .
ऐसे सुख साधन भोगना को गोली मारो ,भाड़ में जाए ऐसा भौतिक न टिकने वाला सुख जो भागवत नाम का विस्मरण करा दे ,सिल बट्टे से सर फोड़ दो ऐसे सुख का इससे तो दुःख भला जो भगवान का नाम तो मुख से निकलवा देता है।
सुख में सुमिरन न किया ,दुःख में करता याद रे ,
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद रे।
जिस पर माया चप्पल लगाती है वह भगवान् से विमुख रहता है। पीठ किये रहता है भगवान् की तरफ। जिस पर भगवान् कृपा करते हैं उसका सांसारिक सुख हर लेते हैं।
माया जो भगवान् की दासी है,भगवान् की निकृष्ट शक्ति "अपरा "है , हमारी मित्रा है जो भगवान् को भूल जाते हैं उन्हें भगवान् की याद दिलाती है माया । चप्पल माया के परिवार वाले (हमारे देह के सम्बन्धी )लगाते हैं।
तुम ही मान लो हार ……. एक रूपक है
जिसमें झगड़ा भगवान् और भगवान् की दासी के लड़के
के बीच
है। भगवान् की दासी का लड़का हमारा मन है और भगवान् की दासी
भगवान् की अपरा शक्ति
(निकृष्ट शक्ति )माया है। लेकिन झगड़ा निपटता नहीं है दासी का लड़का
सोचने के लिए कुछ और
वक्त माँगता है। कृपया इस प्रवचन को ज़रूर सुनें :आनंद मिलेगा।
ज्ञान चक्षु खुलेंगे।
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