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प्राणायाम का मस्तिष्क पर प्रभाव
सभी शरीरविज्ञानविशारदों का इस विषय में एक मत है कि साँस लेते समय मस्तिष्क में से दूषित रक्त प्रवाहिता होता है और शुद्ध रक्त उसमें संचरित होता है । यदि साँस गहरी हो तो दूषित रक्त एक साथ बह निकलता है और ह्रदय से जो शुद्ध रक्त वहाँ आता है वह और भी सुन्दर आने लगता है । प्राणायाम की यह विधि है कि उसमें साँस गहरे -से गहरा लिया जाय , इसका परिणाम यह होता है कि मस्तिष्क से सारा दूषित रक्त बह जाता है और ह्रदय का शुद्ध रक्त उसे अधिक मात्रा में मिलता हैं । योग उड्डीयान -बन्ध को हमारे सामने प्रस्तुत कर इस स्थिति को और भी स्पष्ट कर देने की चेष्टा करता है । इस उड्डीयानबन्ध से हमें इतना अधिक शुद्ध रक्त मिलता है , जितना किसी श्वास सम्बन्धी व्यायाम से हमें नहीं मिल सकता । प्राणायाम से जो हमें तुरन्त बल और नवीनता प्राप्त होती है उसका यही वैज्ञानिक कारण है ।
प्राणायाम का मेरुदण्ड पर प्रभाव
मेरुदण्ड एवं उससे सम्बन्धित स्नायुओं के सम्बन्ध में हम देखते हैं कि इन अङों के चारों ओर रक्त की गति साधारणतया मन्द होती है । प्राणायाम से इन अङों में रक्त की गति बढ जाती है और इस प्रकार इन अङों को स्वस्थ रखने में प्राणायाम सहायक होता है ।
योग में कुम्भक करते समय मूल , उड्डीयान और जालन्धर -तीन प्रकार के बन्ध करने का उपदेश दिया गया है । इन बन्धों का एक काल में अभ्यास करने से पृष्ठवंश का , जिसके अंदर मेरुदण्ड स्थित है तथा तत्सम्बन्धित स्नायुओं का उत्तम रीति से व्यायाम हो जाता है । इन बन्धों के करने से पृष्ठवंश को यथास्थान रखने वाली मांसपेशियाँ , जिनमें तत्सबन्धित स्नायु भी रहतें हैं , क्रमशः फैलती हैं और फिर सिमट जाती हैं , जिससे इन पेशियाँ तथा मेरुदण्ड एवं तत्सम्बन्धित स्नायुओं में रक्त की गति बढ जाती है । बन्ध यदि न किये जायँ तो भी प्राणायाम की सामान्य प्रक्रिया , ही ऐसी है कि उससे पृष्ठवंश पर ऊपर की ओर हल्का -सा खिंचाव पडता है , जिससे मेरुदण्ड तथा तत्सम्बन्धित स्नायुओं को स्वस्थ रखने में सहायत मिलती है ।
स्नायुजाल के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालने के लिये तो सबसे उत्तम प्राणायाम भस्त्रिका है । इस प्राणायाम में श्वास की गति होने से शरीर के प्रत्येक सूक्ष्म -से -सूक्ष्म अङु की मालिश हो जाती है और इसका स्नायुजाल पर बहुत अच्छा प्रभाव पडता है ।
निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि प्राणायाम हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिये सर्वोत्तम व्यायाम है । इसीलिये भारत के प्राचीन योगाचार्य प्राणायाम को शरीर की प्रत्येक आभ्यन्तर क्रिया को स्वस्थ रखने का एकमात्र साधन मानते थे । उनमें से कुछ तो प्राणायाम को शरीर का स्वाच्छ ठीक रखने में इतना सहायक मानते हैं कि वे इसके लिये अन्य किसी साधन की आवश्यकता ही नहीं होता , अपितु इस शरीरयन्त्र को जीवन देने वाले प्रत्येक व्यापार पर अधिकार हो जाता है ।
श्वाससम्बन्धी व्यायामों से श्वासोपयोगी अङुसमूह को तो लाभ होता ही है , किंतु उनका असली महत्त्व तो इस बात को लेकर है कि उनसे अन्य अङुसमूहों को भी , खासकर स्नायुजाल को विशेष लाभ पहुँचता है ।
कुछ उपयोगी बन्ध एवं मुद्राएँ
योगसाधना में बन्धों एवं मुद्राओं का विशेषरुप से उल्लेख आया है । इनमें से कुछ उपयोगी बन्धों एवं मुद्राओं का यहाँ विवरण दिया जा रहा है जिनका उल्लेख रुद्रयामला में आया हैं ।
क्रमाशा:
प्राणायाम का मेरुदण्ड पर प्रभाव
मेरुदण्ड एवं उससे सम्बन्धित स्नायुओं के सम्बन्ध में हम देखते हैं कि इन अङों के चारों ओर रक्त की गति साधारणतया मन्द होती है । प्राणायाम से इन अङों में रक्त की गति बढ जाती है और इस प्रकार इन अङों को स्वस्थ रखने में प्राणायाम सहायक होता है ।
योग में कुम्भक करते समय मूल , उड्डीयान और जालन्धर -तीन प्रकार के बन्ध करने का उपदेश दिया गया है । इन बन्धों का एक काल में अभ्यास करने से पृष्ठवंश का , जिसके अंदर मेरुदण्ड स्थित है तथा तत्सम्बन्धित स्नायुओं का उत्तम रीति से व्यायाम हो जाता है । इन बन्धों के करने से पृष्ठवंश को यथास्थान रखने वाली मांसपेशियाँ , जिनमें तत्सबन्धित स्नायु भी रहतें हैं , क्रमशः फैलती हैं और फिर सिमट जाती हैं , जिससे इन पेशियाँ तथा मेरुदण्ड एवं तत्सम्बन्धित स्नायुओं में रक्त की गति बढ जाती है । बन्ध यदि न किये जायँ तो भी प्राणायाम की सामान्य प्रक्रिया , ही ऐसी है कि उससे पृष्ठवंश पर ऊपर की ओर हल्का -सा खिंचाव पडता है , जिससे मेरुदण्ड तथा तत्सम्बन्धित स्नायुओं को स्वस्थ रखने में सहायत मिलती है ।
स्नायुजाल के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव डालने के लिये तो सबसे उत्तम प्राणायाम भस्त्रिका है । इस प्राणायाम में श्वास की गति होने से शरीर के प्रत्येक सूक्ष्म -से -सूक्ष्म अङु की मालिश हो जाती है और इसका स्नायुजाल पर बहुत अच्छा प्रभाव पडता है ।
निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि प्राणायाम हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिये सर्वोत्तम व्यायाम है । इसीलिये भारत के प्राचीन योगाचार्य प्राणायाम को शरीर की प्रत्येक आभ्यन्तर क्रिया को स्वस्थ रखने का एकमात्र साधन मानते थे । उनमें से कुछ तो प्राणायाम को शरीर का स्वाच्छ ठीक रखने में इतना सहायक मानते हैं कि वे इसके लिये अन्य किसी साधन की आवश्यकता ही नहीं होता , अपितु इस शरीरयन्त्र को जीवन देने वाले प्रत्येक व्यापार पर अधिकार हो जाता है ।
श्वाससम्बन्धी व्यायामों से श्वासोपयोगी अङुसमूह को तो लाभ होता ही है , किंतु उनका असली महत्त्व तो इस बात को लेकर है कि उनसे अन्य अङुसमूहों को भी , खासकर स्नायुजाल को विशेष लाभ पहुँचता है ।
कुछ उपयोगी बन्ध एवं मुद्राएँ
योगसाधना में बन्धों एवं मुद्राओं का विशेषरुप से उल्लेख आया है । इनमें से कुछ उपयोगी बन्धों एवं मुद्राओं का यहाँ विवरण दिया जा रहा है जिनका उल्लेख रुद्रयामला में आया हैं ।
क्रमाशा:
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