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Wednesday, January 14, 2015

प्रेम


प्रेम जीवन का अद्वितीय वरदान हैं मानव को.
पर तुम्हारे चित्त पर वासना की इतनी अधिक परते जम गई हैं, कि तुम वासना और प्रेम का अन्तर ही भुला बैठे हो.



पर श्रेष्ठ, अद्वितीय युग-पुरूष की पहचान ही यह हैं, कि वह निरंतर प्रेम के मानसरोवर में तैरता रहे.
क्योंकि प्रेम छलछलाहट हैं, ऊष्मा हैं, प्रवाह हैं, पूर्णता हैं.
हजारों वर्ष बाद कृष्ण ने इस प्रेम तत्व को धरती पर उतारा, और अद्वितीय युग-पुरूष बन गयें.
और आज फिर मैं तुम्हें प्रेम का वसंत भेंट करने आया हूँ, मैं एक बार फिर तुम्हारे होंठों पर गुनगुनाहट बिखेरने के लिए आया हूँ. मैं एक बार फिर तुम्हारे अधरों पर प्रेम का नृत्य संपन्न कराने के लिए आया हूँ.
और यह बताने आया हूँ , कि प्रेम के द्वारा कुण्डलिनी जागरण, अनुभूति, साधना एवं इष्ट के साक्षात् जाज्वल्यमान दर्शन सहज सम्भव हैं.

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