तंत्रेश्वर महायोगी
तंत्र का नाम लेते ही डर लगने लगता है, ठीक वैसे ही जैसे अँधेरे में कहीं सुनसान जगह से गुजर रहे हों तो हर पत्थर पेड़ और झाड़ी से भी डर लगता कि मानो वो हमें मार ही डालेगी, आज तंत्र की हालत भी कुछ ऐसी ही हो गई है, आपने तंत्र कहा और अंकों के सामने श्मशान, बलि,मदिरा और जादू-टोना घूमने लगता है, जबकि तंत्र का एक साफ सुथरा चेहरा भी है, लेकिन कुछ कथित तांत्रिकों नें तंत्र-मंत्र के नाम पर जो घिनौना जाल बुला, और उस जाल में भोले-भाले लोगों को फसा कर खूब शोषण करते हुए मानवता की सारी हदों को पिशाचों की भांति लांघ गए, आज हालत ये है कि तंत्र का नाम लो तो लोग भाग खड़े होंगे, लेकिन हम आपको आज बताएँगे कि योग शिरोमणि कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी भी एक सिद्ध तांत्रिक है और उनकी पीठ तंत्र प्रधान पीठ ही है, महायोगी जी को तंत्रेश्वर भी कहा जाता है, लेकिन डरिये नहीं, ये तंत्र बलि और जादू टोने वाला नहीं है, तंत्र के दो प्रमुख भाग होते हैं वाम मार्ग और दक्षिण मार्ग, वाम मार्ग ही वो रास्ता है या वो तरीका है जिसमें शब् साधना, मदिरा पान, बलि प्रथा जैसे तत्व हैं, किन्तु तंत्र का दक्षिण मार्ग भी है, जो इन सब आडम्बरों से परे साफ सुथरा पूजन एवं क्रिया विधान है, इस तंत्र में धर्म के लगभग सभी अंगों का समावेश होता है, चाहे वो योग हो, चाहे मंत्र हो, स्तुति हो, ज्योतिष हो, आयुर्वेद हो,यन्त्र ज्यामिति हो,संगीत हो, भोजन या औषधि हो लगभग सभी अंग इसमें समाये हुए हैं, किन्तु तन्त्र को जानना सरल नहीं, क्योंकि किसी एक विधा को जानना ही पहले बहुत जटिल है तो लगभग सभी विषयों में परांगत होने पर ही तंत्र को समझा जा सकता है, यदि कोई सीधे तंत्र को समझाने लगे तो विनाश संभव है या अर्थ का अनर्थ जरूर हो जाएगा, जब मैं महायोगी जी के पास आया था तो मैंने देखा कि बहुत से लोग महाविद्याओं व योगिनी शक्ति साधना
आदि तंत्र मार्ग से सीख रहे थे, मैं तो तंत्र से कई किलोमीटर की दूरियां रखना चाहता था, बड़ा दुःख हुया जान कर कि
महायोगी जी भी तंत्र-मंत्र के जाल में हैं, सोचा महायोगी जी से ही सीधे नाराजगी जाहिर की जाए, तो मैंने मौका पा कर अपना मंतव्य महायोगी जी को बताया, महायोगी मुस्कुरा दिए, और बोले "तन अर्थात शरीर के भीतर बहुत से रहस्य छिपे हुए होते हैं, उनको जान लेना उनसे परिचय कर लेना व उनकी शक्ति का प्रयोग करने के लिए बाहरी तत्वों का सहारा लेना ही तंत्र की सबसे छोटी और साधारण परिभाषा है" जैसे संगीत योग में ध्यान लगा कर भीतर के नाद पर ध्यान लगाया जाता है, पर कोई नया साधक इसे सरलता से नहीं कर सकता, तो उसे पहले ढोल नगाड़ों, घंटी, शंखों सहित थाल आदि की ध्वनि सुनायी जाती है और उस पर ध्यान लगने को कहा जाता है, ये जो बाहरी व्यवस्था है, ढोल-नगारे, घंटी, थाल आदि ये व्यवस्था ही तंत्र कहलाती है, मुझे जब कुछ समय महायोगी जी के साथ रहने का अवसर मिला, तो धीरे-धीरे तंत्र के प्रति मन में भरी सारी नफरत जाती रही, आज मैं स्वयं तंत्र के पथ पर चलने वाला साधक बनाना चाहता हूँ, कौलान्तक पीठ की लगभग सारी पूजा प्रणालियाँ तंत्र से ही प्रभावित हैं, हों भी क्यों न ? शक्ति पीठ होने के नाते ये तंत्र पीठ भी है और तो और तंत्र की सबसे अद्भुत पीठ होने के कारण ही इस पीठ को महारहस्य पीठ भी कहा जाता है तंत्र में पटल पूजा, आवरण पूजा, पादुका पूजन, पीठ पूजा, बृहद न्यास, स्तोत्र, स्तवन, मंत्र, यन्त्र, इष्ट, सहित कई ऐसी कर्मकाण्ड प्रधान विदियाँ होती हैं जो साधना को रोचक तो बनती ही हैं साथ ही सरल भी बना देती है, योगियों को अत्यंत कठोर तप से जो प्राप्तियां होती है, एक तंत्र मार्गीय साधक उसे सहज ही प्राप्त कर लेता है, किन्तु इस मार्ग का ज्ञान भी गुरु प्रधान ही है, यदि गुरु दीक्षा प्रदान करे तो साधना आगे बढाती है,
पग-पग पर गुरु की कृपा चाहिए तभी यन्त्र और मंत्र का उत्कीलन हो पाता है अन्यथा नहीं, तंत्र द्वारा पूजा आदि करने पर त्वरित परिणाम आने लगाते हैं, किन्तु बलि आदि कुत्सित कर्म करने वाले नर्कगामी होते हैं, उनका स्वयम ही नाश हो जाता है, तंत्र का सबसे बड़ा नियम होता है, नियमित साधना करो, असत्य से दूर रहो, हिंसा न करो, गुरु पूजा और इष्ट की पूजा में अधिक समय व्यतीत करो, साथ ही तंत्र की सबसे बड़ी चेतावनी ये है कि कोई भी मनघडंत प्रयोग बिलकुल न करो, क्योंकि वही विनाश का कारण बन जाएगा, कौलानातक पीठाधीश्वर जैसा कोमल ह्रदय योगी मिलना बड़ा ही जटिल है, जब उनको पीठ का प्रमुख बनाया गया तो वो बहुत ही चिंतित थे, क्योंकि कौलान्तक पीठ तो कर्मकाण्ड प्रधान पीठ है जहाँ सात्विक तंत्र के माध्यम से ही सारा कर्मकां संपन्न होता है, लेकिन महायोगी जी नें इस कार्य को भी बखूबी किया आइये कुछ चित्र देखते हैं, इन चित्रों से स्पष्ट होता है कि महायोगी जी की तंत्र में कितनी गहरी पकड़ है, हालांकि जब महायोगी जी को पीठ प्रमुख बनाया जा रहा था तो इस बात पर विवाद भी हुआ था कि एक योगी तंत्र प्रधान क्रियाओं को बिधिबत कैसे पूरा करेगा? लेकिन तब महायोगी जी नें सिद्ध किया था कि उनहोंने जितना तंत्र का ज्ञान लिया है वो अपने आप में बहुत ज्यादा है, पीठ की आवश्यकता से भी अधिक महायोगी जी ने तंत्र को सीखा, दस महाविद्याओं सहित, योगिनी मंडल, अप्सरा मंडल को सिद्ध किया, महायोगी जी नें अप्सरा सिद्धि की बात करते हुए बहुत ही बृहद और सटीक विवरण दिया था, पहले तो महायोगी जी नें अप्सराओं के नाम बताये-अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चंद्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवराहर्षा, इंद्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मेनका, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, रंभा, रितुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, तिलोत्तमा, उमलोचा, उर्वशीवपु, वरगा, विद्युतपर्ना, विषवची, ये 51 प्रमुख अप्सराएँ हैं जो तंत्र में अहम् भूमिका रखती हैं साथ ही कुल संख्या तो इनकी 108 है, फिर महायोगी जी ने यक्शिनियों के नाम बताये, फिर किन्नरियों के तदन्तर गंधार्विनियों के फिर क्रमश: योगिनियों के नाम व पूजन विधि को गूढ़तम रूप से प्रस्तुत कर महायोगी जी नें अपने को तंत्र क्षेत्र का सिद्ध साधक सिद्ध कर दिया, जबसे महायोगी जी पीठ प्रमुख बने तबसे लगातार उनकी साधना और पूजा की सैली नें निर्विवाद रूप से उनकी ज्ञान मति को प्रतिष्ठित कर दिया, अब तो बड़े-बड़े तन्त्रचारी भी महायोगी जी से कुछ सीख कर स्वयम को गौरवान्बित महसूस करते हैं, किसी भी पूजा से पूर्व जैसे महायोगी तैयारियां करते हैं उसे देख कर लगता है कि न जाने महायोगी जी इतने कठोर कैसे हैं, किन्तु जब उनसे बात करते हैं तो लगता है कि ये तो एक साधारण सा युवा है क्या जानता होगा? इतनी रहस्यमयता महायोगी जी के जीवन में तंत्र की माया के कारण ही है, शायद ये भी एक कारण है कि महायोगी जी धन को अधिक महत्त्व नहीं देते, क्योंकि तंत्र की पवित्र सिद्धियाँ केवल वैरागी को ही प्राप्त होती है, महायोगी जी का देवी-देवताओं के प्रति आकर्षण तन्त्रमयता के लिए वरदान सिद्ध हुआ, हिमालय के अनेक पर्वतों पर यक्षों, गंधेवों, किन्नरों, किरातों, नागों, भूतो, प्रेतों व अन्य जातियों का सूक्ष्म निवास है, जब तक आप उनको या तो
परास्त न कर लो या माना कर प्रसन्न न कर लो तब तक हिमालय के दिव्य स्थलों पर साधना कर पाना मुमकिन ही नहीं होता है, साधारण शब्दों में तो मैं यही कह सकता हूँ की महायोगी जी तंत्र के सिद्ध पुरुष हैं, उनकी क्षमताओं का विवरण ही नहीं दिया जा सकता, हालाँकि महायोगी जी को वाम मार्गी तंत्र का भी ज्ञान है किन्तु उसे केवल
सीखा गया ताकि वाम मार्ग का भी ज्ञान हो सके, हिमालयों पर वाम मार्ग वैसे भी वर्जित ही होता है क्योंकि वो स्थान ताप हेतु बना हुआ है जिसे तपोभूमि कहा जाता है, तंत्र के लिए सबसे बड़ी बात तो ये भी है की महायोगी नें तंत्र की बलि प्रथा का कड़ा विरोध किया, मदिरा सेवन आदि से इस परम्परा को मुक्त किया जिसके लिए उनको बेहद कठिन लड़ाई
लड़नी पडी, किन्तु वे कामयाब हुए, तंत्र की कथित भ्रांतियों से मुक्ति पर कौलान्तक पीठ को वास्तविक तंत्र शैली प्राप्त हुयी है, आज यदि कोई साधक तंत्र मार्ग से साधना करना चाहता है, तो कौलान्तक पीठ से सुन्दर और कोई स्थान नहीं हो सकता, जहाँ सात्विक तंत्र देवी-देवताओं की पूर्ण पूजन प्रणाली संजोये हुए है, तंत्रेश्वर महायोगी जी के बारे में
इतना बताना, हालाँकि पूरी बात करना नहीं होगा, किन्तु फिर भी यहाँ दी गयी थोड़ी सी जानकारी का उद्देश्य केवल यह बताना है की वे तंत्र के पूरण पुरुष हैं, बाकि साधक स्वयं जान ही जाते हैं उनको बताने की ज्यादा आवशयकता नहीं होती, महायोगी जी तंत्र साधना के अधिकारी इसलिए भी बने, क्योंकि बाल्यकाल में ही उनहोंने तंत्र
मार्ग की एक हजार दीक्षाएं अपने गुरु से ली, जिनमें राज्याभिषेक दीक्षा, सम्राट अभिषेक दीक्षा जैसी दीक्षाओं से ले कर महाविद्याओं की दीक्षा उनहोंने प्राप्त की, योगिनी मंडल के पूजन नें उनको तंत्र के रहस्यों को समझाने के लायक बनाया, आप इन तथ्यों से समझ ही सकते हैं, की महायोगी नें तंत्र को उपरी तौर पर पर नहीं बल्की बहुत गहरे से समझा है, आगम
और निगम ग्रंथों का अध्ययन कर उनकी सटीक व्याख्या महायोगी जी ने की है, प्राचीन पांडुलिपियों में निहित तंत्र को समझ कर उसे साधकों के लायक बनाया, आज बहुत सी पांडुलिपियों में छिपा तंत्र ज्ञान पीठ के पास सुरक्षित है, महायोगी जी नें सहज ज्ञान से तंत्र का जो उद्दार किया है, वो वास्तव में काबिले तारीफ है, किन्तु शायद
महायोगी जी के लिए ये सब बातें साधारण घटनाएँ ही होंगी, बाल्यकाल से ही बड़े-बड़े साधू सन्यासियों का तंत्र ज्ञान के लिए महायोगी जी के पास आना ही सिद्ध करता है की कितनी छोटी आयु में इनको ये सब ज्ञान प्रयोगात्मक तौर पर हासिल था.......
तंत्र का नाम लेते ही डर लगने लगता है, ठीक वैसे ही जैसे अँधेरे में कहीं सुनसान जगह से गुजर रहे हों तो हर पत्थर पेड़ और झाड़ी से भी डर लगता कि मानो वो हमें मार ही डालेगी, आज तंत्र की हालत भी कुछ ऐसी ही हो गई है, आपने तंत्र कहा और अंकों के सामने श्मशान, बलि,मदिरा और जादू-टोना घूमने लगता है, जबकि तंत्र का एक साफ सुथरा चेहरा भी है, लेकिन कुछ कथित तांत्रिकों नें तंत्र-मंत्र के नाम पर जो घिनौना जाल बुला, और उस जाल में भोले-भाले लोगों को फसा कर खूब शोषण करते हुए मानवता की सारी हदों को पिशाचों की भांति लांघ गए, आज हालत ये है कि तंत्र का नाम लो तो लोग भाग खड़े होंगे, लेकिन हम आपको आज बताएँगे कि योग शिरोमणि कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी भी एक सिद्ध तांत्रिक है और उनकी पीठ तंत्र प्रधान पीठ ही है, महायोगी जी को तंत्रेश्वर भी कहा जाता है, लेकिन डरिये नहीं, ये तंत्र बलि और जादू टोने वाला नहीं है, तंत्र के दो प्रमुख भाग होते हैं वाम मार्ग और दक्षिण मार्ग, वाम मार्ग ही वो रास्ता है या वो तरीका है जिसमें शब् साधना, मदिरा पान, बलि प्रथा जैसे तत्व हैं, किन्तु तंत्र का दक्षिण मार्ग भी है, जो इन सब आडम्बरों से परे साफ सुथरा पूजन एवं क्रिया विधान है, इस तंत्र में धर्म के लगभग सभी अंगों का समावेश होता है, चाहे वो योग हो, चाहे मंत्र हो, स्तुति हो, ज्योतिष हो, आयुर्वेद हो,यन्त्र ज्यामिति हो,संगीत हो, भोजन या औषधि हो लगभग सभी अंग इसमें समाये हुए हैं, किन्तु तन्त्र को जानना सरल नहीं, क्योंकि किसी एक विधा को जानना ही पहले बहुत जटिल है तो लगभग सभी विषयों में परांगत होने पर ही तंत्र को समझा जा सकता है, यदि कोई सीधे तंत्र को समझाने लगे तो विनाश संभव है या अर्थ का अनर्थ जरूर हो जाएगा, जब मैं महायोगी जी के पास आया था तो मैंने देखा कि बहुत से लोग महाविद्याओं व योगिनी शक्ति साधना
आदि तंत्र मार्ग से सीख रहे थे, मैं तो तंत्र से कई किलोमीटर की दूरियां रखना चाहता था, बड़ा दुःख हुया जान कर कि
महायोगी जी भी तंत्र-मंत्र के जाल में हैं, सोचा महायोगी जी से ही सीधे नाराजगी जाहिर की जाए, तो मैंने मौका पा कर अपना मंतव्य महायोगी जी को बताया, महायोगी मुस्कुरा दिए, और बोले "तन अर्थात शरीर के भीतर बहुत से रहस्य छिपे हुए होते हैं, उनको जान लेना उनसे परिचय कर लेना व उनकी शक्ति का प्रयोग करने के लिए बाहरी तत्वों का सहारा लेना ही तंत्र की सबसे छोटी और साधारण परिभाषा है" जैसे संगीत योग में ध्यान लगा कर भीतर के नाद पर ध्यान लगाया जाता है, पर कोई नया साधक इसे सरलता से नहीं कर सकता, तो उसे पहले ढोल नगाड़ों, घंटी, शंखों सहित थाल आदि की ध्वनि सुनायी जाती है और उस पर ध्यान लगने को कहा जाता है, ये जो बाहरी व्यवस्था है, ढोल-नगारे, घंटी, थाल आदि ये व्यवस्था ही तंत्र कहलाती है, मुझे जब कुछ समय महायोगी जी के साथ रहने का अवसर मिला, तो धीरे-धीरे तंत्र के प्रति मन में भरी सारी नफरत जाती रही, आज मैं स्वयं तंत्र के पथ पर चलने वाला साधक बनाना चाहता हूँ, कौलान्तक पीठ की लगभग सारी पूजा प्रणालियाँ तंत्र से ही प्रभावित हैं, हों भी क्यों न ? शक्ति पीठ होने के नाते ये तंत्र पीठ भी है और तो और तंत्र की सबसे अद्भुत पीठ होने के कारण ही इस पीठ को महारहस्य पीठ भी कहा जाता है तंत्र में पटल पूजा, आवरण पूजा, पादुका पूजन, पीठ पूजा, बृहद न्यास, स्तोत्र, स्तवन, मंत्र, यन्त्र, इष्ट, सहित कई ऐसी कर्मकाण्ड प्रधान विदियाँ होती हैं जो साधना को रोचक तो बनती ही हैं साथ ही सरल भी बना देती है, योगियों को अत्यंत कठोर तप से जो प्राप्तियां होती है, एक तंत्र मार्गीय साधक उसे सहज ही प्राप्त कर लेता है, किन्तु इस मार्ग का ज्ञान भी गुरु प्रधान ही है, यदि गुरु दीक्षा प्रदान करे तो साधना आगे बढाती है,
पग-पग पर गुरु की कृपा चाहिए तभी यन्त्र और मंत्र का उत्कीलन हो पाता है अन्यथा नहीं, तंत्र द्वारा पूजा आदि करने पर त्वरित परिणाम आने लगाते हैं, किन्तु बलि आदि कुत्सित कर्म करने वाले नर्कगामी होते हैं, उनका स्वयम ही नाश हो जाता है, तंत्र का सबसे बड़ा नियम होता है, नियमित साधना करो, असत्य से दूर रहो, हिंसा न करो, गुरु पूजा और इष्ट की पूजा में अधिक समय व्यतीत करो, साथ ही तंत्र की सबसे बड़ी चेतावनी ये है कि कोई भी मनघडंत प्रयोग बिलकुल न करो, क्योंकि वही विनाश का कारण बन जाएगा, कौलानातक पीठाधीश्वर जैसा कोमल ह्रदय योगी मिलना बड़ा ही जटिल है, जब उनको पीठ का प्रमुख बनाया गया तो वो बहुत ही चिंतित थे, क्योंकि कौलान्तक पीठ तो कर्मकाण्ड प्रधान पीठ है जहाँ सात्विक तंत्र के माध्यम से ही सारा कर्मकां संपन्न होता है, लेकिन महायोगी जी नें इस कार्य को भी बखूबी किया आइये कुछ चित्र देखते हैं, इन चित्रों से स्पष्ट होता है कि महायोगी जी की तंत्र में कितनी गहरी पकड़ है, हालांकि जब महायोगी जी को पीठ प्रमुख बनाया जा रहा था तो इस बात पर विवाद भी हुआ था कि एक योगी तंत्र प्रधान क्रियाओं को बिधिबत कैसे पूरा करेगा? लेकिन तब महायोगी जी नें सिद्ध किया था कि उनहोंने जितना तंत्र का ज्ञान लिया है वो अपने आप में बहुत ज्यादा है, पीठ की आवश्यकता से भी अधिक महायोगी जी ने तंत्र को सीखा, दस महाविद्याओं सहित, योगिनी मंडल, अप्सरा मंडल को सिद्ध किया, महायोगी जी नें अप्सरा सिद्धि की बात करते हुए बहुत ही बृहद और सटीक विवरण दिया था, पहले तो महायोगी जी नें अप्सराओं के नाम बताये-अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चंद्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवराहर्षा, इंद्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मेनका, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, रंभा, रितुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, तिलोत्तमा, उमलोचा, उर्वशीवपु, वरगा, विद्युतपर्ना, विषवची, ये 51 प्रमुख अप्सराएँ हैं जो तंत्र में अहम् भूमिका रखती हैं साथ ही कुल संख्या तो इनकी 108 है, फिर महायोगी जी ने यक्शिनियों के नाम बताये, फिर किन्नरियों के तदन्तर गंधार्विनियों के फिर क्रमश: योगिनियों के नाम व पूजन विधि को गूढ़तम रूप से प्रस्तुत कर महायोगी जी नें अपने को तंत्र क्षेत्र का सिद्ध साधक सिद्ध कर दिया, जबसे महायोगी जी पीठ प्रमुख बने तबसे लगातार उनकी साधना और पूजा की सैली नें निर्विवाद रूप से उनकी ज्ञान मति को प्रतिष्ठित कर दिया, अब तो बड़े-बड़े तन्त्रचारी भी महायोगी जी से कुछ सीख कर स्वयम को गौरवान्बित महसूस करते हैं, किसी भी पूजा से पूर्व जैसे महायोगी तैयारियां करते हैं उसे देख कर लगता है कि न जाने महायोगी जी इतने कठोर कैसे हैं, किन्तु जब उनसे बात करते हैं तो लगता है कि ये तो एक साधारण सा युवा है क्या जानता होगा? इतनी रहस्यमयता महायोगी जी के जीवन में तंत्र की माया के कारण ही है, शायद ये भी एक कारण है कि महायोगी जी धन को अधिक महत्त्व नहीं देते, क्योंकि तंत्र की पवित्र सिद्धियाँ केवल वैरागी को ही प्राप्त होती है, महायोगी जी का देवी-देवताओं के प्रति आकर्षण तन्त्रमयता के लिए वरदान सिद्ध हुआ, हिमालय के अनेक पर्वतों पर यक्षों, गंधेवों, किन्नरों, किरातों, नागों, भूतो, प्रेतों व अन्य जातियों का सूक्ष्म निवास है, जब तक आप उनको या तो
परास्त न कर लो या माना कर प्रसन्न न कर लो तब तक हिमालय के दिव्य स्थलों पर साधना कर पाना मुमकिन ही नहीं होता है, साधारण शब्दों में तो मैं यही कह सकता हूँ की महायोगी जी तंत्र के सिद्ध पुरुष हैं, उनकी क्षमताओं का विवरण ही नहीं दिया जा सकता, हालाँकि महायोगी जी को वाम मार्गी तंत्र का भी ज्ञान है किन्तु उसे केवल
सीखा गया ताकि वाम मार्ग का भी ज्ञान हो सके, हिमालयों पर वाम मार्ग वैसे भी वर्जित ही होता है क्योंकि वो स्थान ताप हेतु बना हुआ है जिसे तपोभूमि कहा जाता है, तंत्र के लिए सबसे बड़ी बात तो ये भी है की महायोगी नें तंत्र की बलि प्रथा का कड़ा विरोध किया, मदिरा सेवन आदि से इस परम्परा को मुक्त किया जिसके लिए उनको बेहद कठिन लड़ाई
लड़नी पडी, किन्तु वे कामयाब हुए, तंत्र की कथित भ्रांतियों से मुक्ति पर कौलान्तक पीठ को वास्तविक तंत्र शैली प्राप्त हुयी है, आज यदि कोई साधक तंत्र मार्ग से साधना करना चाहता है, तो कौलान्तक पीठ से सुन्दर और कोई स्थान नहीं हो सकता, जहाँ सात्विक तंत्र देवी-देवताओं की पूर्ण पूजन प्रणाली संजोये हुए है, तंत्रेश्वर महायोगी जी के बारे में
इतना बताना, हालाँकि पूरी बात करना नहीं होगा, किन्तु फिर भी यहाँ दी गयी थोड़ी सी जानकारी का उद्देश्य केवल यह बताना है की वे तंत्र के पूरण पुरुष हैं, बाकि साधक स्वयं जान ही जाते हैं उनको बताने की ज्यादा आवशयकता नहीं होती, महायोगी जी तंत्र साधना के अधिकारी इसलिए भी बने, क्योंकि बाल्यकाल में ही उनहोंने तंत्र
मार्ग की एक हजार दीक्षाएं अपने गुरु से ली, जिनमें राज्याभिषेक दीक्षा, सम्राट अभिषेक दीक्षा जैसी दीक्षाओं से ले कर महाविद्याओं की दीक्षा उनहोंने प्राप्त की, योगिनी मंडल के पूजन नें उनको तंत्र के रहस्यों को समझाने के लायक बनाया, आप इन तथ्यों से समझ ही सकते हैं, की महायोगी नें तंत्र को उपरी तौर पर पर नहीं बल्की बहुत गहरे से समझा है, आगम
और निगम ग्रंथों का अध्ययन कर उनकी सटीक व्याख्या महायोगी जी ने की है, प्राचीन पांडुलिपियों में निहित तंत्र को समझ कर उसे साधकों के लायक बनाया, आज बहुत सी पांडुलिपियों में छिपा तंत्र ज्ञान पीठ के पास सुरक्षित है, महायोगी जी नें सहज ज्ञान से तंत्र का जो उद्दार किया है, वो वास्तव में काबिले तारीफ है, किन्तु शायद
महायोगी जी के लिए ये सब बातें साधारण घटनाएँ ही होंगी, बाल्यकाल से ही बड़े-बड़े साधू सन्यासियों का तंत्र ज्ञान के लिए महायोगी जी के पास आना ही सिद्ध करता है की कितनी छोटी आयु में इनको ये सब ज्ञान प्रयोगात्मक तौर पर हासिल था.......
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