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Wednesday, January 14, 2015

रूद्रयामल भाग (13)


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प्राणायाम की प्रक्रिया
प्राणायाम का अर्थ है श्वास की गति को कुछ काल के लिये रोक लेना । साधारण स्थिति में श्वासों की चाल दस प्रकार की होती है ---पहले श्वास का भीतर जाना , फिर रुकना , फिर बाहर निकलना ; फिर रुकना , फिर भीतर जाना , फिर बाहर निकलना इत्यादि । प्राणायाम में श्वास लेने का यह सामान्य क्रम टूट जाता है । श्वास (वायु के भीतर जाने की क्रिया ) और प्रश्वास (बाहर जाने की क्रिया ) दोनों ही गहरे और लम्बे होते हैं और श्वासों का विराम अर्थात् ‍ रुकना तो इतनी अधिक देर तक होता है कि उसके सामने सामान्य स्थिति में हम जितने काल तक रुकते है वह तो नहीं के समान और नगण्य ही है । योग की भाषा में श्वास खींचन को ‘पूरक ’ बाहर निकालने को ‘रेचक ’ और रोक रखने को ‘कुम्भक ’कहते हैं । प्राणायाम कई प्रकार के होते हैं और जितने प्रकार के प्राणायाम हैं , उन सबमें पूरक , रेचक और कुम्भक भी भिन्न -भिन्न प्रकार के होते हैं । पूरक नासिका से करने में हम दाहिने छिद्र का अथवा बायें का अथवा दोनों का ही उपयोग कर सकते हैं । रेचक दोनोम नासारन्धों से अथवा एक से ही करना चाहिये । कुम्भक पूरक के भी पीछे हो सकता है और रेचक के भी , अथवा दोनों के ही पीछे न हो तो भी कोई आपत्ति नहीं। पूरक , कुम्भक और रेचक के इन्हीं भेदों को लेकर प्राणायाम के अनेक प्रकार हो गये हैं ।
पूरक , कुम्भक और रेचक कितनी -कितनी देर तक होना चाहिये , इसका भी हिसाब रखा गया हैं । यह आवश्यक माना गया है कि जितनी देर तक पूरक किया जय , उससे चौगुना समय कुम्भक में लगाना चाहिये और दूना समय रेचक में अथवा दूसरा हिसाब यह है कि जितना समय पूरक में लगाया जाय उससे दूना कुम्भक में और उतरना ही रेचक में लगाया जाय । प्राणायाम की सामान्य प्रक्रिया का दिग्दर्शन कराकर अब हम प्राणायाम सम्बन्धी उन खास बातों पर विचार करेंगे जिनसे हम यह समझ सकेंगे कि प्राणायाम का हमारे शरीर पर कैसा प्रभाव पडता है ।
पूरक करते समय जब किं साँस अधिक -से -अधिक गहराई के साथ भीतर खींचे जाती है तथा कुम्भक के समय भी , जिसमें बहुधा साँस को भीतर रोकना होता है , आगे की पेट की नसों को सिकोडकर रखा जाता है । उन्हें कभी फुलाकर आगे की ओर नहीं बढाया जाता । रेचक भी जिसमें साँस को अधिक -से अधिक गहराई के साथ बाहर निकालना होता है , पेट और छाती को जोर से सिकोडना पडता है और उड्डीयान ----बन्ध के लिये पेट को भीतर की ओर खींचा जाता है । प्राणायाम के अभ्यास के लिये कोई -सा उपयुक्ति आसन चुन लिया जाता है , जिसमें सुखपूर्वक पालथी मारी जा सके और मेरुदण्ड सीधा रह सके ।
एक विशेष प्रकार का प्राणायाम होता है जिसे भस्त्रि का प्राणायाम करते हैं । उसके दो भाग होते हैं , जिनमें से दूसरे भाग कीं प्रक्रिया वही है जो ऊपर कही गयी है ।
पहले भाग में साँस को जल्दी -जल्दी बाहर निकालना होता है , यहाँ तक कि एक मिनट में २४० बार साँस बाहर आ जाते हैं । योग में एक श्वास की क्रिया होती है जिसे ‘कपालभाति ’ कहते हैं । भस्त्रिका के पहले भाग में ठीक वैसी ही क्रिया की जाती है ।
क्रमाशा:

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