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Wednesday, April 22, 2015

शिव स्वरोदय (भाग-5)


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नामरूपादिकाः सर्वे मिथ्या सर्वेषु विभ्रमः।
अज्ञान मोहिता मूढ़ा यावत्तत्त्वे न विद्यते।।26।।
अन्वय -- यावत् तत्वे (पूर्णतया ज्ञानं) न विद्यते, (तावत्) अज्ञानमोहिता: मूढ़ा: सर्वेषु सर्वे नामादिका: मिथ्या विभ्रम: (जायते)।
भावार्थ& -- जब तक तत्वों का पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता, तब तक हम अज्ञान के वशीभूत होकर नाम आदि के मिथ्या भवजाल में फंसे रहते हैं।
इदं स्वरोदयं शास्त्रं सर्वशास्त्रोत्तमोत्तमम्।
आत्मघट प्रकाशार्थं प्रदीपकलिकोपमम्।।27।।
अन्वय -- सर्वशास्त्रोत्तमोत्तमम् इदं स्वरोदयं शास्त्रम् (यत्) आत्मघटं
प्रकाशार्थं प्रदीपकलिकोपमम्
भावार्थ& -- स्वरोदय शास्त्र सभी उत्तम शास्त्रों में श्रेष्ठ है जो हमारे आत्मारूपी घट (घर) को दीपक की ज्योति के रूप में आलोकित करता है।
यस्मै कस्मै परस्मै वा न प्रोक्तं प्रश्नहेतवे।
तस्मादेतत्स्वयं ज्ञेयमात्मनोवाऽत्मनात्मनि।।28।।

       
Yogiraj Dhyannath's photo.

अन्वय -- यस्मै, कस्मै, परस्मै वा प्रश्नहेतवे (मात्रमेव) न प्रोक्तं,
तस्माद् एतद् स्वयं आत्मना आत्मानि आत्मन: ज्ञेयम्।
भावार्थ& -- इस परम विद्या का उद्देश्य मात्र भौतिक जगत सम्बन्धी अथवा अन्य उपलब्धियों से जुड़े प्रश्नों के उत्तर पाना नहीं है। बल्कि आत्म-साक्षात्कार हेतु इस विद्या को स्वयं सीखना चाहिए और निष्ठापूर्वक इसका अभ्यास करना चाहिए।
न तिथिर्न च नक्षत्रं न वारो ग्रहदेवताः।
न च विष्टिर्व्यतीपातो वैधृत्याद्यास्तथैव च।।29।।
अन्वय -- न तिथि:, न नक्षत्रं न वार: (न) ग्रहदेवता:, न च विष्टि:,
व्यतीपात: वैधृति-आद्या: तथैव च।
भावार्थ& स्वरज्ञानी को किसी काम को प्रारम्भ करने के लिए ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शुभ तिथि, नक्षत्र, दिन, ग्रहदेवता, भद्रा, व्यतिपात और योग (वैधृति आदि) आदि के विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अर्थात् कार्य के अनुकूल स्वर और तत्व के उदय काल में कभी भी कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है।
कुयोगो नास्तिको देवि भविता वा कदाचन।
प्राप्ते स्वरबले शुद्धे सर्वमेव शुभं फलम्।।30।।
अन्वय -- हे देवि, (कश्चित) कदाचन कुयोगो नास्तिको भविता, (अपि)
शुद्धे स्वरबले प्राप्ते (तस्मै) सर्वम् एवं शुभं फलम् प्राप्तम्।
भावार्थ& हे देवि, यदि कोई व्यक्ति दुर्भाग्य से कभी नास्तिक हो जाये, तो स्वरोदय ज्ञान प्राप्त कर लेने पर वह पुन: पावन हो जाता है और उसे भी शुभ फल ही मिलते हैं।

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