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इस अंक में भगवान शिव ने माँ पार्वती को विभिन्न प्रकार से स्वर की महिमा समझाई है।
ब्रह्माण्ड-खण्ड-पिण्डाद्याः स्वरेणैव हि निर्मिताः।
सृष्टि संहारकर्त्ता च स्वर साक्षान्महेश्वरः।।20।।
अन्वय -- स्वरेण एव हि ब्रह्माण्ड-खण्ड-पिण्डाद्या:
निर्मिता: स्वर: च सृष्टिसंहारकर्ता साक्षात् महेश्वर:।
भावार्थ -- ये विराट और लघु ब्रह्माण्ड और इनमें स्थित सभी वस्तुएं स्वर से निर्मित हैं और स्वर ही सृष्टि के संहारक साक्षात् महेश्वर (शिव) हैं।
निर्मिता: स्वर: च सृष्टिसंहारकर्ता साक्षात् महेश्वर:।
भावार्थ -- ये विराट और लघु ब्रह्माण्ड और इनमें स्थित सभी वस्तुएं स्वर से निर्मित हैं और स्वर ही सृष्टि के संहारक साक्षात् महेश्वर (शिव) हैं।
स्वरज्ञानात्परं गुह्मम् स्वरज्ञनात्परं धनम्।
स्वरज्ञानत्परं ज्ञानं नवा दृष्टं नवा श्रुतम्।।21।।
अन्वय -- स्वरज्ञानात् परं गुह्यं (ज्ञानं), स्वरज्ञानात् परं धन,
स्वरज्ञानात् परं ज्ञानं नवा दृष्टं नवा श्रुतम्।
भावार्थ& स्वर के ज्ञान से बढ़कर कोई गोपनीय ज्ञान, स्वर-ज्ञान से बढ़कर कोई धन और स्वर ज्ञान से बड़ा कोई दूसरा ज्ञान न देखा गया और न ही सुना गया है।
स्वरज्ञानात् परं ज्ञानं नवा दृष्टं नवा श्रुतम्।
भावार्थ& स्वर के ज्ञान से बढ़कर कोई गोपनीय ज्ञान, स्वर-ज्ञान से बढ़कर कोई धन और स्वर ज्ञान से बड़ा कोई दूसरा ज्ञान न देखा गया और न ही सुना गया है।
शत्रून्हन्यात् स्वबले तथा मित्र समागमः।
लक्ष्मीप्राप्तिः स्वरबले कीर्तिः स्वरबले सुखम्।।22।।
अन्वय -- स्वरबले शत्रून् हन्यात् तथा मित्रसमागम
स्वरबले लक्ष्मी-कीर्ति-सुखप्राप्ति:।
भावार्थ& -- स्वर की शक्ति से शत्रु पराजित हो जाता है, बिछुड़ा मित्र मिल जाता है। यहाँ तक कि माता लक्ष्मी की कृपा, यश और सुख, सब कुछ मिल जाता है।
स्वरबले लक्ष्मी-कीर्ति-सुखप्राप्ति:।
भावार्थ& -- स्वर की शक्ति से शत्रु पराजित हो जाता है, बिछुड़ा मित्र मिल जाता है। यहाँ तक कि माता लक्ष्मी की कृपा, यश और सुख, सब कुछ मिल जाता है।
कन्याप्राप्ति स्वरबले स्वरतो राजदर्शनम्।
स्वरेण देवतासिद्धिः स्वरेण क्षितिपो वशः।।23।।
अन्वय -- स्वरबले कन्याप्राप्ति:, स्वरतो राजदर्शनम् स्वरेण देवतासिद्धि: स्वरेण क्षितिपो वश:।
भावार्थ& -- स्वर ज्ञान द्वारा पत्नी की प्राप्ति, शासक से मिलन, देवताओं की सिद्धि मिल जाती है और राजा भी वश में हो जाता है।
भावार्थ& -- स्वर ज्ञान द्वारा पत्नी की प्राप्ति, शासक से मिलन, देवताओं की सिद्धि मिल जाती है और राजा भी वश में हो जाता है।
स्वरेण गम्यते देशो भोज्यं स्वरबले तथा।
लघुदीर्घं स्वरबले मलं चैव निवारयेत्।।24।।
अन्वय -- स्वरेण देश: गम्यते स्वरबले भोज्यं तथा स्वरबले लघुदीर्घं
मलं च एव निवारयेत्।
भावार्थ& -- अनुकूल स्वर के समय यात्रा करनी चाहिए, स्वादिष्ट भोजन करना चाहिए तथा मल-मूत्र विसर्जन भी अनुकूल स्वर के काल में ही करना चाहिए।
मलं च एव निवारयेत्।
भावार्थ& -- अनुकूल स्वर के समय यात्रा करनी चाहिए, स्वादिष्ट भोजन करना चाहिए तथा मल-मूत्र विसर्जन भी अनुकूल स्वर के काल में ही करना चाहिए।
सर्वशास्त्रपुराणादि स्मृतिवेदांगपूर्वकम्।
स्वरज्ञानात्परं तत्त्वं नास्ति किंचिद्वरानने।।25।।
अन्वय -- हे वरानने, स्वर ज्ञानात्परं सर्वशास्त्रपुराणादिस्मृतिवेदांगपूर्वकं
तत्वं किंचिद् न अस्ति।
भावार्थ& -- हे वरानने, सभी शास्त्रों, वेदों, वेदान्तों, पुराणों और स्मृतियों द्वारा बताया गया कोई ज्ञान या तत्व स्वर ज्ञान से बढ़कर नहीं है।
तत्वं किंचिद् न अस्ति।
भावार्थ& -- हे वरानने, सभी शास्त्रों, वेदों, वेदान्तों, पुराणों और स्मृतियों द्वारा बताया गया कोई ज्ञान या तत्व स्वर ज्ञान से बढ़कर नहीं है।
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