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'शिव स्वरोदय' स्वरोदय विज्ञान पर अत्यन्त प्राचीन ग्रंथ है। इसमें कुल 395 श्लोक हैं। यह ग्रंथ शिव-पार्वती संवाद के रूप में लिखा गया है। शायद इसलिए कि सम्पूर्ण सृष्टि में समष्टि और व्यष्टि का अनवरत संवाद चलता रहता है और योगी अन्तर्मुखी होकर योग द्वारा इस संवाद को सुनता है, समझता है और आत्मसात करता हैं। इस ग्रंथ के रचयिता साक्षात् देवाधिदेव भगवान शिव को माना जाता है। यहाँ शिव स्वरोदय के श्लोकों का हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद दिया जाएगा। आवश्यकतानुसार व्याख्या भी करने का प्रयास किया जाएगा। वैसे यह ग्रंथ बहुत ही सरल संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
इसमें बतायी गयी साधनाओं का अभ्यास बिना किसी स्वरयोगी के सान्निध्य के करना वर्जित है। केवल निरापद प्रयोगों को ही पाठक अपनाएँ।
महेश्वरं नमस्कृत्य शैलजां गणनायकम्।
गुरुं च परमात्मानं भजे संसार तारकम्।।1।।
अन्वय -- महेश्वरं शैलजां गणनायकं संसारतारकं
गुरुं च नमस्कृत्य परमात्मानं भजे।
अर्थ:- महेश्वर भगवान शिव, माँ पार्वती, श्री गणेश और संसार से उद्धार करने वाले गुरु को नमस्कार करके परमात्मा का स्मरण करता हूँ।
महेश्वरं नमस्कृत्य शैलजां गणनायकम्।
गुरुं च परमात्मानं भजे संसार तारकम्।।1।।
अन्वय -- महेश्वरं शैलजां गणनायकं संसारतारकं
गुरुं च नमस्कृत्य परमात्मानं भजे।
अर्थ:- महेश्वर भगवान शिव, माँ पार्वती, श्री गणेश और संसार से उद्धार करने वाले गुरु को नमस्कार करके परमात्मा का स्मरण करता हूँ।
देवदेव महादेव कृपां कृत्वा ममोपरि।
सर्वसिद्धिकरं ज्ञानं वदयस्व मम प्रभो।।2।।
अन्वय -- देवदेव महादेव यम प्रभो यमोपरि कृपां कृत्वा
सर्वसिद्धिकरं ज्ञानं वदयस्व।
अर्थ:- माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे देवाधिदेव महादेव, मेरे स्वामी, मुझ पर कृपा करके सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाले ज्ञान प्रदान कीजिए।
कथं बह्माण्डमुत्पन्नं कथं वा परिवर्त्तते।
कथं विलीयते देव वद ब्रह्माण्डनिर्णयम्।।3।।
अन्वय -- देव, कथं ब्रहमाण्डं उत्पन्नं, कथं परिवर्तते, कथं
विलीयते वा ब्रहमाण्ड-निर्णयं च वद।
अर्थ:- हे देव, मुझे यह बताने की कृपा करें कि यह ब्रह्माण्ड कैसे उत्पन्न हुआ, यह कैसे परिवर्तित होता है, अन्यथा यह कैसे विलीन हो जाता है, अर्थात् इसका प्रलय कैसे होता है और ब्रह्माण्ड का मूल कारण क्या है?
सर्वसिद्धिकरं ज्ञानं वदयस्व मम प्रभो।।2।।
अन्वय -- देवदेव महादेव यम प्रभो यमोपरि कृपां कृत्वा
सर्वसिद्धिकरं ज्ञानं वदयस्व।
अर्थ:- माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे देवाधिदेव महादेव, मेरे स्वामी, मुझ पर कृपा करके सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाले ज्ञान प्रदान कीजिए।
कथं बह्माण्डमुत्पन्नं कथं वा परिवर्त्तते।
कथं विलीयते देव वद ब्रह्माण्डनिर्णयम्।।3।।
अन्वय -- देव, कथं ब्रहमाण्डं उत्पन्नं, कथं परिवर्तते, कथं
विलीयते वा ब्रहमाण्ड-निर्णयं च वद।
अर्थ:- हे देव, मुझे यह बताने की कृपा करें कि यह ब्रह्माण्ड कैसे उत्पन्न हुआ, यह कैसे परिवर्तित होता है, अन्यथा यह कैसे विलीन हो जाता है, अर्थात् इसका प्रलय कैसे होता है और ब्रह्माण्ड का मूल कारण क्या है?
तत्त्वाद् ब्रह्याण्डमुत्पन्नं तत्त्वेन परिवर्त्तते।
तत्त्वे विलीयते देवि तत्त्वाद् ब्रह्मा़ण्डनिर्णयः।।4।
अन्वय-- ईश्वर उवाच - देवि, तत्वाद् ब्रह्माण्डम् उत्पन्नं, तत्वेन
परिवर्त्तते, तत्वे (एव) विलीयते, तत्वाद् (एव)
ब्रह्माण्डनिर्णय: (च)।
अर्थ:- भगवान बोले - हे देवि, यह ब्रह्माण्ड तत्व से उत्पन्न होता है, तत्व से परिवर्तित होता है, तत्व में ही विलीन हो जाता है और तत्व से ही ब्रह्माण्ड का निर्णय होता है, अर्थात् तत्व ही ब्रह्माण्ड का मूल कारण है। (इस प्रकार सृष्टि का अनन्त क्रम चलता रहता है
तत्त्वे विलीयते देवि तत्त्वाद् ब्रह्मा़ण्डनिर्णयः।।4।
अन्वय-- ईश्वर उवाच - देवि, तत्वाद् ब्रह्माण्डम् उत्पन्नं, तत्वेन
परिवर्त्तते, तत्वे (एव) विलीयते, तत्वाद् (एव)
ब्रह्माण्डनिर्णय: (च)।
अर्थ:- भगवान बोले - हे देवि, यह ब्रह्माण्ड तत्व से उत्पन्न होता है, तत्व से परिवर्तित होता है, तत्व में ही विलीन हो जाता है और तत्व से ही ब्रह्माण्ड का निर्णय होता है, अर्थात् तत्व ही ब्रह्माण्ड का मूल कारण है। (इस प्रकार सृष्टि का अनन्त क्रम चलता रहता है
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